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26 oct

निजी कर्मचारियों की अस्थिर ज़िंदगी, जिसमें भविष्य तय नहीं

भारत में निजी क्षेत्र में काम करने वाले करोड़ों कर्मचारी—ऑफिसों, फैक्ट्रियों, दुकानों और छोटे-बड़े व्यापारिक प्रतिष्ठानों में दिन-रात मेहनत करते हैं। वे समय पर ऑफिस पहुंचते हैं, अपने काम को पूरी ईमानदारी से निभाते हैं और संस्थान की प्रगति में अपना अमूल्य योगदान देते हैं। लेकिन क्या उनके अपने भविष्य की कोई गारंटी होती है?

इस असंगठित या अर्ध-संगठित निजी कार्यबल की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि लाखों कर्मचारी आज भी ऐसे हालात में काम करते हैं जहां न उन्हें पेंशन की सुविधा है, न स्वास्थ्य बीमा का लाभ, और न ही उनके परिवार को किसी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध है। ज़्यादातर मामलों में वे कॉन्ट्रैक्ट पर होते हैं या अस्थायी रूप से नियुक्त किए जाते हैं, जहां कंपनी को अधिकार होता है कि जब चाहे उन्हें निकाल दे।

एक अंतरराष्ट्रीय सर्वे के अनुसार, भारत में 85% से अधिक कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है। यह वह वर्ग है जिसे ना तो उचित वेतन मिलता है, ना ही भविष्य निधि (PF), ईएसआईसी (ESIC) जैसी सरकारी सुरक्षा योजनाओं की पूरी पहुंच मिल पाती है। सबसे दुखद स्थिति तब उत्पन्न होती है जब इन कर्मचारियों की अचानक मृत्यु हो जाती है।

परिवार का एकमात्र कमाने वाला जब अचानक नहीं रहता, तब पूरा परिवार वित्तीय संकट में डूब जाता है। बच्चों की पढ़ाई, मकान का किराया, दवाइयाँ, राशन—सब कुछ रुक जाता है। निजी कर्मचारी अक्सर यह सोचते हैं कि "कल देखेंगे", लेकिन अचानक आई विपदा के समय उनके पास कोई तैयार योजना नहीं होती।

ऐसे मामलों में बहुत ही कम कंपनियाँ या संस्थान उनके परिवार को आर्थिक सहायता देते हैं। और जहां कोई सरकारी योजना का विकल्प मौजूद होता भी है, तो या तो उसमें आवेदन की प्रक्रिया इतनी जटिल होती है या फिर जानकारी का अभाव होता है, जिससे ज़्यादातर लोग उससे वंचित रह जाते हैं।

ऐसी परिस्थितियों में “सजग समाज सेवा सेतु फाउंडेशन” जैसी संस्थाओं का प्रयास सराहनीय है, जो आम जनता के लिए, विशेषकर असुरक्षित कार्यबल के लिए, सामूहिक सहयोग से मदद पहुंचाने की सोच रखती है। इस फाउंडेशन के तहत यदि कोई सदस्य अपनी असामयिक मृत्यु का शिकार होता है, तो अन्य सदस्य मिलकर 15 दिनों तक स्वैच्छिक योगदान देते हैं और संस्था की ओर से एक तय सहायता राशि उस दिवंगत सदस्य के परिवार को दी जाती है।

यह प्रणाली ना केवल एक आर्थिक सहयोग है, बल्कि यह सामाजिक एकता और जिम्मेदारी का प्रतीक है। इससे यह संदेश जाता है कि हम एक समाज के रूप में एक-दूसरे के साथ खड़े हैं, खासकर उन कठिन क्षणों में जब कोई अपना साथ छोड़ जाता है।

निजी कर्मचारियों के लिए एक सामाजिक सुरक्षा ढांचा अत्यंत आवश्यक है। विकसित देशों में चाहे वह अमेरिका हो, यूरोप या ऑस्ट्रेलिया—वहां प्रत्येक कर्मचारी के लिए बीमा, पेंशन और आपातकालीन सहायता योजनाएं अनिवार्य रूप से लागू हैं। भारत में भी इसकी आवश्यकता आज पहले से कहीं ज़्यादा है, क्योंकि यहां का युवा वर्ग बड़ी संख्या में निजी क्षेत्र में प्रवेश कर रहा है।

हमारे समाज को यह समझना होगा कि अगर एक ड्राइवर, माली, सेल्समैन, वर्कशॉप वर्कर या रिटेल स्टाफ का अचानक निधन हो जाए, तो उसका परिवार किस प्रकार संघर्ष करेगा। ऐसी स्थिति में केवल सरकार की ओर देखने से काम नहीं चलेगा, हमें स्वयं आगे आकर मदद के साधन बनाने होंगे।

“निजी कर्मचारियों की अस्थिर ज़िंदगी” केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि सच्चाई है जो हर शहर, हर कस्बे और गांव में देखने को मिलती है। यह ब्लॉग उसी सच्चाई को उजागर करता है कि मेहनत करने वाले लोगों का जीवन और भविष्य असुरक्षित नहीं होना चाहिए। “सजग समाज सेवा सेतु फाउंडेशन” जैसे प्रयास तभी सफल होंगे जब समाज का हर वर्ग इससे जुड़े और एकजुट होकर यह प्रण ले कि हम किसी भी परिवार को अकेला नहीं छोड़ेंगे।

आइए, इस बदलाव की शुरुआत आज से करें। यदि आप स्वयं एक निजी कर्मचारी हैं या किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं, तो इस पहल से जुड़ें, जानकारी साझा करें और एक सुरक्षित समाज के निर्माण में योगदान दें।