242, sec-5, Wave City, Ghaziabad
Welcome to सजग समाज सेवा सेतु फाउंडेशन
Welcome to सजग समाज सेवा सेतु फाउंडेशन
242, sec-5, Wave City, Ghaziabad
26 oct
इंसान एक सामाजिक प्राणी है। यह बात हम सभी ने किताबों में पढ़ी है, लेकिन असल मायनों में इसका अर्थ तब समझ आता है जब हम जीवन की किसी कठिन परिस्थिति में फँसते हैं। कोई दुर्घटना हो, बीमारी हो या घर के कमाने वाले सदस्य का अचानक चला जाना — ऐसे वक्त में अगर समाज साथ खड़ा हो जाए, तो हर असंभव भी संभव लगने लगता है।
यही सोच जन्म देती है **कम्युनिटी P2P (Peer-to-Peer) मॉडल** को। यह मॉडल कहता है कि अगर एक व्यक्ति पर मुसीबत आए, तो समाज के बाकी सदस्य उस बोझ को आपस में बाँट लें। न कोई अकेला रहेगा, न ही असहाय। भारत जैसे देश में, जहाँ करोड़ों परिवार सीमित आय और सामाजिक सुरक्षा के बिना जीते हैं, इस मॉडल की ज़रूरत पहले से कहीं ज़्यादा है।
आइए समझते हैं कि यह मॉडल क्या है, कैसे काम करता है और कैसे यह हमारे समाज की तस्वीर बदल सकता है।
**P2P कम्युनिटी मॉडल का अर्थ** है — व्यक्ति से व्यक्ति, दिल से दिल तक सीधा सहयोग। इसमें कोई तीसरी संस्था, एजेंट या मुनाफाखोर कंपनी नहीं होती। उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कि 1000 सदस्य एक साथ जुड़ते हैं और हर महीने ₹100 का योगदान करते हैं। इस तरह हर महीने ₹1,00,000 की राशि एकत्र होती है। जब भी किसी सदस्य के परिवार पर आपदा आती है — जैसे आकस्मिक मृत्यु या गंभीर बीमारी — यह राशि उस परिवार की मदद के लिए दी जाती है।
यह कोई बीमा नहीं है, बल्कि एक मानवीय सहयोग प्रणाली है, जो भरोसे, पारदर्शिता और संवेदना पर आधारित है। न कोई जटिल क्लेम प्रक्रिया, न लंबा इंतज़ार, न छोटे अक्षरों में लिखी शर्तें। सिर्फ एक सीधा सवाल — क्या कोई ज़रूरतमंद है? और एक सीधा जवाब — हाँ, हम सब साथ हैं।
**सजग समाज सेवा सेतु फाउंडेशन** जैसे संगठन इस विचार को मूर्त रूप दे रहे हैं। उनके सदस्य बेहद मामूली शुल्क पर जुड़ते हैं और जब किसी सदस्य का असमय निधन हो जाता है, तो फाउंडेशन उस परिवार को आर्थिक मदद देता है। यह मदद हर सदस्य के छोटे योगदान से मिलकर दी जाती है, जिससे एक बड़ा असर पैदा होता है।
सोचिए, अगर हर मोहल्ला, गाँव या कॉलोनी इस मॉडल को अपनाए, तो बीमा की आवश्यकता नहीं, एक सामाजिक सुरक्षा का ताना-बाना तैयार हो सकता है। यह उस भारत की झलक होगी, जहाँ ‘मैं’ की जगह ‘हम’ की भावना हो।
यह मॉडल न केवल वित्तीय सुरक्षा देता है, बल्कि मानसिक संबल भी। जब कोई व्यक्ति जानता है कि अगर उसके साथ कुछ हुआ, तो उसके परिवार के पीछे एक हज़ार लोगों का सहारा है, तो वह निश्चिंत होकर जीवन जीता है।
कई विकसित देशों में भी इस प्रकार के समुदाय आधारित मॉडल काम कर रहे हैं, जैसे कि माइक्रो इंश्योरेंस को-ऑपरेटिव्स, हेल्थ शेयरिंग कम्युनिटीज़, और ऑनलाइन P2P डोनेशन प्लेटफॉर्म्स। भारत में इसकी अधिक ज़रूरत है क्योंकि यहाँ सामाजिक बीमा की पहुँच अभी भी सीमित है और आम आदमी सरकारी योजनाओं या कॉर्पोरेट बीमा से दूर है।
अब सवाल उठता है — क्या यह मॉडल व्यावहारिक है?
जवाब है — बिल्कुल। लेकिन इसके लिए चाहिए कुछ मूलभूत तत्व: