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26 oct

बच्चों की शिक्षा और भविष्य की चुनौतियाँ: जब सहारा छिन जाता है

एक बच्चे के सपने तब आकार लेते हैं जब उसके माता-पिता या अभिभावक उसकी पीठ पर हाथ रखकर कहते हैं, "तू कर सकता है!" लेकिन जब वही सहारा किसी कारणवश छिन जाता है, खासकर तब जब परिवार का मुख्य कमाने वाला व्यक्ति अचानक दुनिया छोड़ देता है, तो उस मासूम के सपनों में एक दरार आ जाती है।

यह एक ऐसी त्रासदी है जो आँकड़ों से कहीं ज़्यादा गहराई से समझी जा सकती है। भारत में हर साल लाखों बच्चे अपने माता या पिता, विशेष रूप से एकमात्र कमाने वाले, को खो देते हैं। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 के समय में ही भारत में करीब 1.5 लाख बच्चे अनाथ हो गए थे, और इनमें से ज़्यादातर बच्चे शिक्षा से वंचित हो गए। लेकिन यह संकट सिर्फ महामारी तक सीमित नहीं है।

जब कमाने वाला चला जाता है, तो घर की आर्थिक रीढ़ टूट जाती है। सबसे पहले जो चीज़ प्रभावित होती है, वह है बच्चों की शिक्षा। स्कूल की फीस भरना मुश्किल हो जाता है, कॉपी-किताबें, यूनिफॉर्म, और ट्यूशन जैसी ज़रूरतें अचानक 'लग्ज़री' बन जाती हैं। कई बच्चे पढ़ाई छोड़कर छोटा-मोटा काम करने लगते हैं ताकि घर का खर्च चले। इससे उनका बचपन खो जाता है और भविष्य अंधकारमय हो जाता है।

एक सर्वे के मुताबिक, जिन बच्चों ने अपने माता या पिता को खोया है, उनमें से 42% ने स्कूल छोड़ दिया या उनकी शिक्षा प्रभावित हुई। इसके पीछे सिर्फ आर्थिक समस्या नहीं, मानसिक तनाव भी एक बड़ा कारण है। पिता या माता के चले जाने से बच्चे भावनात्मक रूप से भी टूट जाते हैं, जिससे वे पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाते।

हमारे समाज में ऐसी कोई मजबूत व्यवस्था नहीं है जो ऐसे बच्चों के भविष्य की गारंटी दे सके। सरकार की ओर से कुछ योजनाएँ जरूर हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर उन तक पहुँचना कई बार असंभव होता है। कागज़ी प्रक्रिया, पहचान प्रमाण, और सीमित संसाधनों के कारण इन योजनाओं का लाभ केवल कुछ ही परिवारों को मिल पाता है।

यही वजह है कि “सजग समाज सेवा सेतु फाउंडेशन” जैसी पहलें आज के समय में बेहद ज़रूरी हो गई हैं। यह संस्था एक सामाजिक सुरक्षा मॉडल प्रस्तुत करती है जिसमें सदस्यता के ज़रिए एक ऐसी व्यवस्था खड़ी की जाती है जिससे अगर किसी सदस्य की मृत्यु हो जाए, तो उसके बच्चों को तत्काल सहायता मिल सके। यह सहायता बच्चों की शिक्षा, रहन-सहन और मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहद अहम साबित होती है।

इस फाउंडेशन का उद्देश्य न केवल आर्थिक सहयोग देना है, बल्कि एक स्थायी सहारा बनाना है जिससे बच्चों का भविष्य संवर सके। जब समाज मिलकर किसी अनाथ बच्चे की पढ़ाई का ज़िम्मा लेता है, तो वह सिर्फ उसकी मदद नहीं करता, बल्कि एक बेहतर नागरिक, एक मजबूत पीढ़ी और एक आत्मनिर्भर समाज की नींव रखता है।

साथ ही, हमें स्कूलों, शिक्षकों और स्थानीय समुदायों को भी संवेदनशील बनाना होगा। अनाथ या आर्थिक रूप से संघर्षरत बच्चों की पहचान कर उन्हें समुचित सहयोग देना बेहद ज़रूरी है। कई स्कूल आज भी फीस न भर पाने के कारण बच्चों को बाहर निकाल देते हैं, जबकि उन्हें ऐसी स्थिति में साथ देना चाहिए।

आइए हम सब मिलकर यह सोचें कि कोई बच्चा सिर्फ इस वजह से अपनी पढ़ाई न छोड़े क्योंकि उसका सहारा चला गया। हमें समाज को इस दिशा में जागरूक बनाना होगा। चाहे वह एक छात्रवृत्ति योजना हो, किताबों का दान हो या समय-समय पर काउंसलिंग—हर छोटी पहल से किसी की ज़िंदगी संवर सकती है।

याद रखिए, जब एक बच्चा पढ़ाई छोड़ता है, तो वह केवल अपना भविष्य नहीं, पूरे समाज की संभावनाओं को कमजोर करता है। और जब वह बच्चा फिर से शिक्षा की ओर लौटता है, तो वह समाज के पुनर्निर्माण की एक किरण बन जाता है।

“सजग समाज सेवा सेतु फाउंडेशन” जैसे प्रयासों को समर्थन देकर हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि कोई बच्चा सिर्फ इसलिए न झुके क्योंकि ज़िंदगी ने उससे उसका सहारा छीन लिया है। उसकी पीठ पर हमारा हाथ हो, यही सबसे बड़ी मदद है।