242, sec-5, Wave City, Ghaziabad
Welcome to सजग समाज सेवा सेतु फाउंडेशन
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26 oct
मध्यमवर्गीय परिवारों की ज़िंदगी संतुलन की रस्सी पर चलने जैसी होती है — हर महीने का बजट एकदम तंग, जहाँ हर खर्च का हिसाब किताब ज़रूरी होता है। बच्चों की स्कूल फीस, किराया, बिजली-पानी के बिल, दवा-इलाज, और रोज़मर्रा का राशन — इन सबमें पहले ही आमदनी खिंचती हुई सी लगती है। ऐसे में जब बात आती है बीमा करवाने की, तो वह एक अतिरिक्त बोझ जैसा महसूस होता है।
एक तरफ, हम यह भी जानते हैं कि बीमा ज़रूरी है। एक अनहोनी किसी भी समय पूरे परिवार को आर्थिक बर्बादी के कगार पर ला सकती है। लेकिन दूसरी तरफ, सीमित आमदनी वाले परिवार के लिए बीमा की किस्तें देना अपने भविष्य की सुरक्षा के लिए वर्तमान को और कठिन बना देना होता है। यही वजह है कि एक बड़े वर्ग के पास अभी भी कोई जीवन बीमा या सुरक्षा योजना नहीं है।
भारत में IRDAI (Insurance Regulatory and Development Authority of India) की रिपोर्ट के अनुसार, केवल 3 में से 1 वयस्क भारतीय के पास ही जीवन बीमा है। और उनमें से भी अधिकांश न्यूनतम कवरेज के साथ, सिर्फ औपचारिकता पूरी करने के लिए बीमा लेते हैं। कारण साफ़ है — बीमा की लागत और पारिवारिक ज़िम्मेदारियों के बीच संतुलन बना पाना बेहद कठिन हो गया है।
मध्यमवर्गीय परिवारों की सबसे बड़ी चिंता यही है कि अगर वे हर महीने बीमा की प्रीमियम भरेंगे, तो बच्चों की ज़रूरतों, बुजुर्गों की दवाओं और बाकी अनिवार्य खर्चों के लिए पैसे कहाँ से आएंगे?
आज की तारीख में एक औसत टर्म इंश्योरेंस पॉलिसी जिसकी पर्याप्त कवरेज हो, उसकी प्रीमियम लागत ₹10,000 से ₹20,000 सालाना के बीच होती है। एक तरफ ज़रूरतें बढ़ रही हैं, दूसरी तरफ आमदनी स्थिर है या बढ़ते खर्चों के कारण उपयोग में नहीं आ रही। ऐसे में बीमा अक्सर प्राथमिकता सूची से नीचे चला जाता है।
यही कारण है कि किसी भी आकस्मिक परिस्थिति — जैसे परिवार के कमाने वाले की मृत्यु — पर यह परिवार बिना किसी आर्थिक सुरक्षा के पूरी तरह असहाय हो जाता है। बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं, घर की EMI नहीं चुकाई जाती, मेडिकल खर्च नहीं उठाया जा सकता, और फिर एक सशक्त परिवार कुछ ही महीनों में ज़िंदगी की बुनियादी ज़रूरतों के लिए संघर्ष करता दिखाई देता है।
इस स्थिति से निपटने के लिए सिर्फ बीमा कंपनियों की नहीं, पूरे समाज की ज़िम्मेदारी बनती है। अगर हम चाहते हैं कि हर परिवार सुरक्षित हो, तो हमें वैकल्पिक और सामूहिक समाधान तलाशने होंगे जो आम लोगों की पहुँच में हों।
“सजग समाज सेवा सेतु फाउंडेशन” एक ऐसा ही मॉडल लेकर आया है जिसमें सदस्यता शुल्क बहुत ही कम रखा गया है, लेकिन ज़रूरत के समय हर सदस्य के परिवार को आर्थिक मदद दी जाती है। यह बीमा नहीं, बल्कि एक सामाजिक सुरक्षा तंत्र है — अपने जैसे लोगों के लिए, अपने जैसे लोगों द्वारा।
यह सोच बिल्कुल अलग है — इसमें कोई कंपनी मुनाफा नहीं कमा रही, कोई एजेंट कमीशन नहीं ले रहा। केवल योगदान और सेवा का भाव है। और यही मॉडल मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए एक राहत का रास्ता बन सकता है।
सरकार की योजनाएँ जैसे प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (₹330 सालाना प्रीमियम पर ₹2 लाख का कवर) भले मौजूद हैं, लेकिन इनकी पहुँच और जागरूकता अभी बहुत सीमित है। बहुत से परिवारों को इन योजनाओं के बारे में जानकारी ही नहीं होती। इसलिए ज़रूरी है कि ऐसे सामाजिक संस्थान आगे आएँ और इन योजनाओं को लोगों तक पहुँचाएँ।
साथ ही, बीमा कंपनियों को भी मध्यमवर्गीय और निम्न आय वर्ग के लिए सरल, सस्ती और पारदर्शी योजनाएँ लानी चाहिए जो लोगों को बोझ न लगें, बल्कि उनके जीवन का हिस्सा बन सकें। आज की डिजिटल दुनिया में यह संभव है कि पे-पर-यूज़ मॉडल, सूक्ष्म बीमा, और मासिक प्रीमियम जैसे विकल्प लाकर बीमा को आम आदमी के लिए उपयोगी और सहज बनाया जाए।
अंततः, हमें यह समझना होगा कि बीमा कोई लक्ज़री नहीं, ज़रूरत है। लेकिन यह ज़रूरत तभी पूरी होगी जब समाज, संस्थाएँ और सरकार साथ मिलकर ऐसी व्यवस्था तैयार करें जो सस्ती, सरल और भरोसेमंद हो।
मध्यमवर्गीय परिवारों को सुरक्षा चाहिए, लेकिन वे उस कीमत पर नहीं जो उनके वर्तमान जीवन को ही संकट में डाल दे। इसलिए एक ऐसा मॉडल चाहिए जो योगदान आधारित हो, सामूहिक हो, और सबसे ज़रूरी — मानवीय हो।
आइए, हम सब मिलकर एक ऐसा समाज बनाएं जहाँ किसी को यह न सोचना पड़े कि बीमा करवाएं या बच्चों की फीस भरें। जहाँ सुरक्षा सबकी पहुंच में हो, और हर परिवार यह विश्वास रख सके कि अगर कुछ अनहोनी हो भी जाए, तो वे अकेले नहीं हैं।